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Yoga

DARES

यह भी वैदिक ज्योतिष के बहुत महत्वपूर्ण योगों में से एक हैं जिसमें हमारे श्री के.एन.राव गुरु जी ने इन योगों के संयोग को DARES का नाम दिया हैं जिसमें Dhan धनयोग, Arisht अरिष्ट योग, Rajyoga राजयोग, Exchange परिवर्तन योग और कुछ Special खास योगों के बारें में बताया हैं।    अपनी जन्म राशि जानें।

हमें ज़ीवन में ज़ीने के लिए सभी प्रकार के सुख व वैभव की आवश्यकता होती हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारी कुंड़ली में धन-योग और राज़ योग से ही हमें हमारे पुर्व ज़न्मों द्वारा इस ज़ीवन में धन, वैभव, यश व ज़ीवन की सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं। ज्योतिष से ही हम जान पाते हैं कि क्या हमारी कुण्डली में भी इसी प्रकार के योग हैं। कुंड़ली में धन और राज़योग भावों और ग्रहों के संयोग से बनते हैं। 

धन योग: धन योग को समझने के लिए कुछ योगों को समझना आवाशयक हैं।        अन्य सवालों के जवाब के लिए हमसें मिलनें के लिए सम्पर्क करें।    

धन योग- लगन प्रथम भाव, द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव, एकादश भाव ये पांच भाव धन के भाव हैं, ये भाव आपस में युति, दृष्टि और आपस में परिवर्तन योग बनाए तो धन योग होता हैं। इनमें भाव और भावेश भी एक दूसरें के साथ सम्बंध बनाये तो जातक के पास इनकी दशाओं में धन आता हैं। इसे महाधन योग भी कहा जाता हैं, जिसमें पंचम और एकादश भाव एकदूसरें के पूरक भाव भी कहलातें हैं।   

राजयोग- कुंड‌ली में राजयोग की स्थिति भी धन के लिए बेहतर मानी जाती हैं, अगर केंद्र और त्रिकोण के स्वामी का आपस में संबंध बने तो यह बलशाली धनयोग बनता हैं। महर्षि पराशर के अनुसार केंद्र को विष्णु और त्रिकोण को लक्ष्मी स्थान कहा गया हैं। अगर केंद्र का स्वामी त्रिकोण का भी स्वामी हैं तो यह एक राजयोग हैं। जिससें विष्णु जी और लक्ष्मी के संयोग से राजयोग बनता हैं।  

महाधनी योग- कुंड़ली में चंद्रमा अपनी राशि में मंगल और बुध के साथ लगन में हो तो महाधनी योग होता हैं।   कोई भी सवाल! जवाब के लिए अभी बात करे!

योगकारक ग्रह- कुंड़ली में योगकारक ग्रह (एक ही ग्रह केंद्र का स्वामी और दूसरा ग्रह त्रिकोण का स्वामी) केंद्र या त्रिकोण में ही शुभ अवस्था में हो या एकादश यानि लाभ भाव में हो तो जातक धनी होगा। 

कर्माधिपति-धर्माधिपति- यदि कुंड़ली में नवम और दशम का संबंध होने से कर्माधिपति-धर्माधिपति योग बनता हैं, ऐसे में जातक अपनी किस्मत और मेहनत के साथ धन अर्जित कर समाज़ में नाम कमाता हैं।     

लग्नाधिपति योग चंद्राधिपति योग- लगन या चंद्रमा से 6, 7, 8वें भाव में शुभ ग्रह होना इस योग का संकेत हैं।

अनफा व सुनफा योग- चंद्र से दूसरें व बारहवें भाव में शुभ ग्रहों की स्थिति से जातक अपने मेहनत से धन की प्राप्ति करता हैं।

पुष्फल योग- चंद्रमा की राशि का स्वामी लग्नेश के साथ केंद्र में बलवान स्थिति हो तो धन के साथ यश मान प्रतिष्ठा मिलती हैं जिसे पुष्कल योग बनता हैं।  

सरस्वती योग- यदि बुध, बृहस्पति व शुक्र केंद्र त्रिकोण या दूसरें भाव में एकसाथ या अलग-अलग हो तो सरस्वती योग बनता हैं। इस योग में बृहस्पति को मित्र राशि या उच्च राशि में स्थित होकर बलवान होना चाहिए। इस जातक में जन्मा जातक काव्य, गणित, साहित्य, बुद्धिमान व शास्त्रों में पारांगत, धनवान व व्याख्याकार होता हैं। इस योग के माध्यम से जातक को सरस्वती मां का वरदान मिलता हैं। जातक के अंदर संगीत और गायन की प्रतिभा होती हैं। वह एक मशहूर लेखक और कलात्मक व्यक्तित्व का बन सकता हैं। ऐसे में जातक के पास अपने इसी प्रतिभा की वज़ह से बहुत धन होता हैं।      अन्य योगों को जाननें के लिए यहां देखें। 

लक्ष्मी योग- यह योग नाम से ही अतुल्य धन-सम्पत्ति देने वाला हैं। यदि लग्नेश व नवमेश दोनो बलवान होकर केंद्र-त्रिकोण में अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो तो लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति सज्जन, धनी, विद्वान, रूपवान, प्रसिद्ध, ईमानदार और सब तरह से सुखों का भोग भोगने वाला होता हैं। ऐसा जातक बहुत उत्साही होता हैं और वह अपने जीवन में आने वाले अवसर जिनसे धन कमाया जाये उनसे लड़ने के काबिल होता हैं। यह योग बहुत धन नाम मान प्रतिष्ठा देने वाला होता हैं। ऐसे जातक के जीवन में अमीर लोग ही आते हैं।

मंगल-चंद्रमा- अगर कुंड़ली में मंगल और चंद्रमा एक ही भाव में स्थित हो यह भी धन योग माना जाता हैं।     Click here to know about houses in astrology

कुछ अन्य महत्वपूर्ण योग होने से भी धन की कमी नहीं आती यह भी बहुत ही उत्तम धन योग होते हैं।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंड़ली में लग्न लग्नेश की मजबूती बताती हैं की आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में कभी हार नहीं मानेंगे और पैसा कमाने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।

धन के कारक ग्रह शुक्र, चंद्रमा और गुरु बली हो तो भी इनकी दशा में धन का आगमन होता हैं। इनका सम्बंध लग्न या लग्नेश से बन जाये तो सोने पर सुहागा होता हैं।  

त्रिकोणाधिपति शनि या मंगल जैसे पापी ग्रह भी अपनी दशा में धन में कमी नहीं आने देते।

नवम, नवमेश यानि भाग्येश और राहु केतु भी अचानक धनवान बनाते हैं।      

कभी-कभी कुंड़्ली में धन योग होने पर भी धन की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि षष्टेश, अष्टमेश या द्वादेश का सम्बंध शुभ भावों या शुभ ग्रहों से होता हैं या इस योगों से जुड़े ग्रह वक्री, अस्त, नीच या अधिक अशुभ अवस्था में होते हैं।

 

अरिष्ट योगा Arishat Yoga

जब जातक के जीवन में अच्छा या बुरा समय आता हैं, जिसमें जातक को उसका अनुभव शारीरिक या मानसिक रुप से होता हैं। जिसमें जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता होता हैं जिसें जीवन में अरिष्ट दोष कहा जाता हैं।

इनका विचार हम लग्न, लग्नेश और चंद्रमा से करते हैं।

  1. लग्न या लग्नेश कमज़ोर हो तो जातक बीमारियों या परेशानियों से घिरा रहता हैं।
  2. लग्न में पाप ग्रहों का प्रभाव हो, लग्न पाप कर्तरी में हो, लग्नेश का सम्बंध 6, 8, 12 भावों से हो, लग्नेश पाप प्रभाव में हो, नीच हो, गंड़ात में हो, शत्रु राशि में हो, अस्त हो और लग्नेश ग्रह युद्ध में होने से भी लग्न कमज़ोर होता हैं।
  3. चन्द्रमा का पाप प्रभाव में होना, 6, 8, 12 में होना, अस्त हो, नीच का होना, गंड़ात में होना, चंद्रमा का पक्षबल में निर्बल होना, चंद्र्मा का 6, 8, 12 भावों का स्वामी होने से बालारिष्ट योग होता हैं।
  4. यदि नैस्रगिक क्रुर ग्रहों का सम्बंध 6, 8, 12 भावों या मारक से सम्बंधित हो तो इस दशा में मृत्यु, रोग या कष्ट होता हैं। चंद्रमा व बुध पाप प्रभाव में पापी ग्रह की तरह फल देते हैं। जीवन में मारक भाव द्वितीय और सप्तम भाव की दशायें आने पर भी कष्ट होता हैं।

मारक- (दूसरे का स्वामी अधिक शक्तिशाली, उससे कम सप्तमेंश मारक होता हैं। दूसरें भाव में बैठे ग्रह भी मारक बन जाते हैं, वह ग्रह जिनकी दूसरें भाव के स्वामी के साथ युति हो, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, वह ग्रह जिसकी सप्तमेंश के साथ युति हो वह भी मारक का फल देते हैं)।

 

राजयोग:- Raj Yoga राज़योगों के अर्थ में जातक के जीवन में उन्नति (व्यवसायिक, पारिवारिक, सामाजिक) और सुख-सुविधाओं के साथ वैभव भरा जीवन होता हैं। राजयोग में जातक को नाम, प्रसिद्धि, धन, प्रतिष्ठा और उच्च पद मिलता हैं। कुछ योगों द्वारा हम राजयोगों को समझ सकते हैं।  

केंद्र त्रिकोण के स्वामी के सम्बंध से राजयोग बनता हैं। (त्रिकोण लक्ष्मी व केंद्र विष्णु स्थान के भाव हैं)।                     

दूसरें ब पंचम भाव का स्वामी दूसरें व पंचम या नवम या दशम भाव में हो।

दूसरें व एकादश भाव का स्वामी दशम भाव में हो।

चतुर्थ, पंचम, षष्टम, दशम या एकादश भाव में स्थित राहु कि दशा।

तृतीय भाव में स्थित शुक्र व चंद्र्मा की दशा।         अपनें व्यवसाय के बारें में जाननें के लिए सम्पर्क करें!

नीचभंग राज़योग।

चतुर्थ और नवमेंश का सम्बंध (सुख-सम्पत्ति योग) 

केंद्र-त्रिकोण का सम्बंध् (लक्ष्मी-विष्णु योग)  

नवमेंश और दशमेंश का सम्बंध् (कर्माधिपति-धर्माधिपति योग)।    

 

राशि परिवर्तन योग: Rashi Parivartan Yoga जब दो ग्रह परस्पर एक-दूसरें की राशियों में स्थित हो तो राशि परिवर्तन योग बनता हैं। जैसे एक ग्रह शुक्र, गुरु की धनु राशि में हैं और दूसरा ग्रह गुरु, शुक्र की वृषभ राशि में हैं तो इस प्रकार दोनो ग्रह एक दूसरें की राशि में हो तो राशि परिवर्तन योग बनता हैं। यह तीन प्रकार से बनता हैं।

  1. महायोग- यह राशि परिवर्तन किसी दो शुभ भावों 1, 4, 7, 10, 5, 9 ,11 के स्वामियों में हो तो ऐसा राशि परिवर्तन राज़योग कहलाता हैं। इसमें राशि परिवर्तन करने वाले ग्रहों का एक-दूसरें को देखना आवशयक नहीं हैं। ऐसा योग एक ग्रह की महादशा में और दूसरे की अन्तर्दशा में यश, धन और प्रसिद्धि देता हैं।                 आप भी अपनें फाईनेंस के बारें में जानें!

फल: ऐसा जातक धन युक्त होगा, सुंदर, वस्त्र आभुषणों को धारण करने वाला, सरकार से सम्मानित व उच्च पद वाला, धन पुत्र व सवारी युक्त और स्वामित्व प्राप्त व्यक्ति होता हैं।    

  1. दैंन्य योग- यदि राशि परिवर्तन शुभ भाव 1, 2, 4, 7, 9, 10, 11 और अशुभ भाव 6, 8 या 12 के साथ हो तो यही योग दैन्ययोग बन जाता हैं जिससे जीवन में उतार-चढ़ाव और संघर्ष मिलता हैं। यह अशुभ योग कहलाते हैं।

फल: ऐसा जातक मुर्खता भरे काम, दूसरों की निंदा करने वाला, क्रुर वचन बोलने वाला, सदैव शत्रुओं से परेशान होने वाला, अस्थिर विचार रखने वाला और काम में समस्याओं का सामना करने वाला होता हैं।     

  1. खल योग- यही राशि परिवर्तन शुभ भावों का तीसरे भाव से परिवर्तन होना खल योग कहलाता हैं।

फल: ऐसा जातक कभी अनाचार कभी सदाचार मार्ग पर चलने वाला और कभी सौभाग्यशाली कभी दरिद्रता व दुख प्राप्त करने वाला, कभी शुभ व कभी अशुभ वाणी का प्रयोग करने वाला होता हैं।       

 

Special Yoga - खास योगों को हमने दूसरों योगों में विस्तार से वर्णन किया हुआ हैं जिसे जानने के लिए आप योगों को पढ़ सकते हैं। 

जैसे- विपरीत राजयोग, महाभाग्य योग, नीच भंग राजयोग, पंच महापुरुष योग आदि         

 


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